- इज़्ज़त की ज़िंदगी पाने को जीना होगा ईमानदारी और शराफत की ज़िंदगी : महमूद मदनी
- वालिद की विरासत में बहन बेटियों का हक़ अदा करो
- क़ौम के अंदर से एहसास ए ज़िम्मेदारी खत्म होना अफसोसनाक
- फ़िज़ूलख़र्ची वाली शादी में निकाह न पढ़ाये कोई मौलवी
- अगर कोई मौलवी ऐसा नही करता तो उसका भी बायकाट करना चाहिए
वाराणसी
जमीअत उलेमा हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना सय्यद महमूद असअद मदनी जौनपुर के एक कार्यक्रम में शिरकत करने हेतु कल वाराणसी पहुंचे। जहां से आज सुबह सड़क मार्ग द्वारा जौनपुर रवाना हुए। वाराणसी प्रवास के दौरान कल रात एशा की नमाज़ के बाद मदनपुरा बड़ी मस्जिद में अवाम को संबोधित करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि अल्लाह पाक ने इज़्ज़त को सच्चाई, शराफत और ईमानदारी से जोड़ा है, इसलिए यदि हम इज़्ज़त हासिल करना चाहते हैं तो हमें सच्चाई, शराफत और ईमानदारी का जीवन जीना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि इंसान का जिस्म, माल दौलत, बीवी बच्चे सहित जो भी चीज़ उसे मिली है वे हमारी मिल्कियत नही बल्कि अल्लाह की अमानत है। अगर हमारी मिल्कियत होती तो हमेशा हमारे पास रहती। और जब ये वाज़ेह है कि ये चीजें किसी के पास हमेशा नही रहती, तो साफ ज़ाहिर है कि ये अमानत है, हमें इस अमानत की हिफाज़त करनी है, अफसोस इस बात का है कि पूरी क़ौम ख़यानत में मुब्तला हो गयी है।
मुसलमानों पर आयद हुक़ुक़ का ज़िक्र करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि हक़दार का हक़ अदा करो। पिता की सम्पत्ति में बहन बेटियों का हक़ देने की ताकीद करते हुए कहा कि उनका हक न देने वाले लोग हराम माल खा रहे हैं, इसलिए कि उनके माफ कर देने से भी उनका हक माफ नही होता। उन्होंने बड़े अफसोस के साथ कहा कि क़ौम के अंदर से ज़िम्मेदारियों का एहसास ही खत्म हो गया है।
वाये नाकामी मता ए कारवाँ जाता रहा
कारवां के दिल से एहसास ए ज़ियाँ जाता रहा
शादी विवाह आदि में फ़िज़ूलखर्ची का ज़िक्र करते हुए मौलाना मदनी ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की 35 साल पहले की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि शादी और दिखावे में खर्च किये जाने वाले पैसे को बचा लिया जाए तो तीन साल तक आधी दुनिया को भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है। इसलिए शादी विवाह सादगी से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस शादी में फ़िज़ूलख़र्ची और दिखावा हो वहाँ किसी मौलवी को निकाह नही पढ़ाना चाहिए, अगर कोई मौलवी निकाह पढ़ाता है तो उसका भी बायकाट किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब हुकूमत ऐसे ज़ालिम बादशाह के पास आ जाये जो अल्लाह से भी न डरता हो समझ लो कि ये हमारे गुनाहों की सज़ा है। इसलिए खुद का मुहासबा किया जाए और तौबा इस्तेगफार और अल्लाह के हुज़ूर माफी का एहतेमाम किया जाए। साथ ही कहा मुसलमानों को मुल्क व क़ौम के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को सामूहिक तौर पर अदा करने के लिए जामे हिकमत अमली के साथ आगे आना चाहिए।
अफ़सोस आज हमारे हालत के ज़िम्मेदार हम ही है, काश हम किताबों-सुन्नत से अमल करना शुरू कर दे इंशाअल्लाह हमारे हालत सुधरते देर नही
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