वाराणसी।
शहर बनारस गंगा जमुनी तहज़ीब के लिये जाना जाता है। यहाँ हिन्दू मुस्लिम तानी-बाने की तरह आपस में मिल जुल कर जहां कारोबार करते है, वहीं मिल जुल कर ईद, दीवाली आदि त्योहार मनाने की परंपरा भी है। किसी वली और बुजुर्ग के उर्स में तो कोई चाह कर भी पता नही लगा सकता कि कौन हिन्दू और कौन मुसलमान है। इसी गंगा जमुनी तहज़ीब का एक केंद्र चौक थाने के बगल में स्थित हज़रत जाहिद शहीद रहमतुल्लाह अलैहि को भी माना जाता है। यहाँ मुस्लिम और हिन्दू समान आस्था और श्रद्धा के साथ आते है।
शनिवार को ज़ाहिद शहीद बाबा का उर्स क़ुरआन की तेलावत के साथ शुरू हुआ। उसके बाद गागर और चादर का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद से आस्ताने पर अकीदतमन्दो की आमद और मन्नत मांगने के साथ ही चादर चढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ जो देर रात तक जारी रहा। आयोजन कमेटी ने कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण सोशल डिस्टेंस का ख़ास ख्याल रखते हुए मज़ार के बाहर ही सेनटाइज़र से लेकर मास्क तक की व्यवस्था की थी और एक बार में आस्ताने के अन्दर केवल दस लोगों को ही प्रवेश दिया जा रहा था। ईशा की नमाज़ के बाद नातिया कलाम का दौर शुरू हुआ जो देर रात तक जारी रहा। इस अवसर पर मज़ार और आसपास रंगीन झालरों से आकर्षक सजावट भी की गई थी। नजमी सुल्तान एडवोकेट, विक्की आदि व्यवस्था को दुरुस्त रखने में लगे रहे।
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